चीन में तीन दिसंबर को नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की मुलाक़ात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई
केपी शर्मा ओली ने इसी साल जुलाई महीने में नेपाल के प्रधानमंत्री के तौर पर अपना चौथा कार्यकाल शुरू किया था.
चौथे कार्यकाल में उन्होंने पहला विदेशी दौरा इसी हफ़्ते चीन का किया. ओली दो दिसंबर से पाँच दिसंबर तक चीन के चार दिवसीय दौरे पर हैं.
ओली अपने 87 सदस्यों वाले प्रतिनिधिमंडल के साथ चीन पहुँचे हैं. इस दौरे में उनकी मुलाक़ात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी हुई. सबसे ज़्यादा चर्चा चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई के नए फ्रेमवर्क पर नेपाल के साथ हुए समझौते की हो रही है.
यह फ्रेमवर्क तीन साल तक मान्य रहेगा. अगर इसे कोई भी पक्ष रद्द नहीं करता है तो अगले और तीन साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
नेपाल के अंग्रेज़ी अख़बार काठमांडू पोस्ट से नेपाल की विदेश मंत्री आरज़ू देउबा ने कहा कि बुधवार को बीआरआई के जिस फ़्रेमवर्क पर हस्ताक्षर हुए हैं, उसमें कुछ भी नया नहीं है.
नेपाली विदेश मंत्री ने कहा, ”2017 में बीआरआई को लेकर जो समझौता हुआ था और अब उसके फ़्रेमवर्क पर हस्ताक्षर उसी की निरंतरता है.”
नेपाल में अभी नेपाली कांग्रेस और केपी शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) की सरकार है. इसी सरकार ने बीआरआई फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किया है.
ओली चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले विदेश दौरे पर दो दिसंबर को चीन पहुँचे थे
नए फ्रेमवर्क की ज़रूरत क्यों?
लेकिन सवाल उठता है कि 2017 में बीआरआई पर नेपाल और चीन के बीच जो समझौता हुआ था, उस पर अलग से फ्रेमवर्क लाने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
विजयकांत कर्ण डेनमार्क में नेपाल के राजदूत रहे हैं. अभी वह काठमांडू में ‘सेंटर फ़ॉर सोशल इन्क्लूजन एंड फ़ेडरलिज़्म’ (सीईआईएसएफ़) नाम से एक थिंकटैंक चलाते हैं.
बीआरआई के नए फ्रेमवर्क पर नेपाल के हस्ताक्षर के सवाल पर विजयकांत कर्ण कहते हैं, ”दोनों देशों ने इस पर हस्ताक्षर तो कर दिया है, लेकिन इसका पूरा दस्तावेज़ सामने नहीं आया है. जो दस्तावेज़ हमने देखे हैं, उन्हें पढ़ने के बाद कोई नई बात समझ में नहीं आती है.”
”लेकिन मोरक्को के बाद नेपाल दूसरा देश है, जिसने बीआरआई के नए फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किए हैं. नेपाल सरकार की तरफ़ से जो बातें सामने आई हैं, उनमें मुझे कुछ भी नया नहीं दिख रहा है. एक बात है कि चीन के टीचर नेपाल में मंदारिन भाषा सिखाने आएंगे. लेकिन इससे नेपाल को कितना फ़ायदा होगा, मेरी समझ से बाहर की बात है.”
विजयकांत कर्ण कहते हैं, ”नेपाल की राजनीति में और यहाँ के लोग बीआरआई को इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में देखते हैं. लेकिन यह महज़ इन्फ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि पश्चिम के दबदबे वाले वर्ल्ड ऑर्डर को चुनौती देने का प्रोजेक्ट है.”
”दक्षिण एशिया में यह भारत के लिए चुनौती है और वैश्विक स्तर पर देखें तो अमेरिका के दबदबे वाले वर्ल्ड ऑर्डर के लिए चुनौती है. नेपाली कांग्रेस पहले बीआरआई को लेकर असहज रहती थी लेकिन अभी उसकी असहजता नहीं दिख रही है.”
बीआरआई फ्रेमवर्क पर हुए हस्ताक्षर को लेकर काठमांडू पोस्ट ने लिखा है, ”बुधवार को नए फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर, चीन की प्रस्तावित बीआरआई परियोजना में नेपाल के औपचारिक रूप से शामिल होने की घोषणा है. ओली के साथ चीन गए नेपाली प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने बताया कि नए फ्रेमवर्क में नेपाल में चीन जो भी प्रोजेक्ट लागू करेगा, उसमें पैसा क़र्ज़ और मदद दोनों के रूप में आएगा. लेकिन भविष्य में बीआरआई के तहत आने वाले प्रोजेक्ट पर बातचीत और सहमति को लेकर मुश्किलें ख़त्म नहीं हुई हैं.”
चीनी प्रीमियर ली चियांग के साथ नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली
इसमें नया क्या है?
बीबीसी ने नेपाल में भारत के राजदूत रहे रंजीत राय से पूछा कि ओली सरकार को नए फ्रेमवर्क की ज़रूरत क्यों पड़ी?
रंजीत राय कहते हैं, ”मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ भी नया है. 2017 में नेपाल और चीन के बीच बीआरआई को लेकर जो समझौता हुआ था, उसमें था कि नेपाल में चीन जो भी पोजेक्ट शुरू करेगा, उसमें पैसे क़र्ज़ के रूप में मिलेंगे. लेकिन नेपाल चाहता था कि ये पैसे वित्तीय मदद यानी ग्रांट के तौर पर मिले.”
”अब नए फ्रेमवर्क में लोन के साथ ग्रांट को भी शामिल कर लिया गया है. लेकिन मुश्किलें ख़त्म नहीं हुई हैं. अब भी दोनों देशों को सहमति बनानी पड़ेगी कि कोई प्रोजेक्ट ग्रांट से शुरू होगा या लोन से. यानी इस पर सहमति बनानी पड़ेगी.”
रंजीत राय कहते हैं, ”नेपाल यह भी चाहता था कि क़र्ज़ की ब्याज दर विश्व बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक की तर्ज़ पर हो, लेकिन इस पर भी अभी तक चीन से कोई आश्वासन नहीं मिला है. ऐसे में इसे बड़ी डील या कामयाबी के रूप में देखना तार्किक नहीं लगता है.”
”नए फ्रेमवर्क के बाद यह भी होगा कि चीन जो भी प्रोजेक्ट नेपाल में शुरू करेगा, वो सब बीआरआई के अंतर्गत ही आएंगे. ये ज़रूर है कि नए फ्रेमवर्क पर नेपाल बड़ी राजनीतिक सहमति के साथ गया है. इसमें नेपाली कांग्रेस भी शामिल है. ओली नेपाल में इसे बड़ी कामयाबी के रूप में पेश करेंगे.”
काठमांडू पोस्ट से ओली सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ”भले हमने नए फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर कर दिया है, लेकिन बीआरआई के तहत हम उन परियोजनाओं को स्वीकार नहीं करेंगे, जिनकी ब्याज दर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय डोनर्स से ज़्यादा होंगी. हमारा पूरा ध्यान इस बात पर है कि परियोजना ग्रांट के तौर पर लागू हो और क़र्ज़ की ब्याज दरें वर्ल्ड बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक से ज़्यादा ना हो.”
ओली के चीन दौरे को भारत के साथ संबंधों को संतुलित करने के तौर पर भी देखा जा रहा है
संतुलन की राजनीति
अमेरिकी थिंक टैंक द विल्सन सेंटर में साउथ एशिया इंस्टिट्यूट के निदेशक माइकल कुगलमैन ने अमेरिकी पत्रिका फॉरन पॉलिस में ओली के चीन दौरे पर एक लेख लिखा है.
कुगलमैन ने लिखा है कि ओली के चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले विदेशी दौरे पर चीन जाने का फ़ैसला करना, इससे नेपाली कांग्रेस और भारत दोनों के नाराज़ होने का जोखिम रहता है. वो भी तब जब नेपाली कांग्रेस के समर्थन से ओली प्रधानमंत्री हैं.
हालांकि नेपाली कांग्रेस के कोटे से विदेश मंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की पत्नी आरज़ू देउबा ओली के साथ चीन दौरे पर हैं.
वहीं, भारत के साथ ओली के संबंध पहले से ही बहुत अच्छे नहीं माने जाते हैं. बीआरआई को लेकर ओली और नेपाली कांग्रेस में अतीत में काफ़ी मतभेद रहे थे. नेपाल और चीन के बीच बीआरआई को लेकर बातचीत पिछले सात सालों से हो रही है, लेकिन कोई भी प्रोजेक्ट ज़मीन पर उतर नहीं पाया है.
पारंपरिक रूप से नेपाल के प्रधानमंत्री कमान संभालने के बाद भारत का दौरा करते हैं, लेकिन ओली ने चीन जाना चुना. इससे पहले प्रचंड भी इस परंपरा को तोड़ चुके हैं. कहा जा रहा है कि ओली को भारत की ओर से कोई औपचारिक आमंत्रण भी नहीं मिला था.
माइकल कुगलमैन ने लिखा है, ”ओली के चीन दौरे को चीन के कैंप में शामिल होने के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे नेपाल की रणनीतिक स्वायत्तता के रूप में देखा जाना चाहिए, जहाँ वह भारत और चीन के बीच संबंधों में संतुलन बनाकर रखना चाहता है. यही रुख़ मालदीव और श्रीलंका की नई सरकारों ने अपनाया है. नेपाल और भारत के बीच तनाव सीमित है, लेकिन कई मामलों में वास्तविक है. आर्थिक नाकेबंदी के कारण नेपाल के लोगों की धारणा बदली है.”