संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने ज़िला अदालत में अपना जवाबी हलफ़नामा दाखिल कर दिया है.
एएसआई का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विष्णु कुमार शर्मा ने बीबीसी से इसकी पुष्टि की है.
एएसआई ने अपने हलफ़नामा में मस्जिद में अवैध निर्माण का दावा किया और नियमित निरीक्षण के दौरान परेशानियों का सामना करने की बात कही है.
मस्जिद पक्ष का कहना है कि उन्हें अभी तक आधिकारिक रूप से इस जवाबी हलफ़नामा के बारे में जानकारी नहीं है और उन्हें मीडिया से इस बारे में पता चला है.
BY:- NITISH KUMAR
इस मामले में एएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि विभाग को जो कुछ कहना था वो हलफ़नामे में लिखा है.
एएसआई ने यह हलफ़नामा महंत ऋषिराज गिरि सहित आठ वादियों द्वारा दायर मुक़दमे के जवाब में दिया है, जिन्होंने दावा किया था कि मस्जिद का निर्माण 1526 में वहां मौजूद मंदिर को तोड़कर किया गया था.
मस्जिद में कई अवैध निर्माण: एएसआई
अदालत में एएसआई का पक्ष रखने वाले वकील विष्णु कुमार शर्मा का कहना है कि 29 नवंबर को उन्होंने अदालत में एएसआई की ओर से प्रतिवाद पत्र दायर किया था.
बीबीसी से बातचीत में विष्णु शर्मा कहते हैं, “अपने जवाब में उन सारी दिक़्क़तों को लिखा है जो एएसआई को मस्जिद में निरीक्षण करते वक्त आती थीं. स्थानीय निवासी और मस्जिद कमिटी एएसआई को अंदर जाने से रोकने का प्रयास करती है. हमने साक्ष्य के रूप में मस्जिद की पुरानी तस्वीरें और नई तस्वीरों को भी अपने जवाब में शामिल किया है.”
एएसआई के मुताबिक़, “जामा मस्जिद को 1920 में एक संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, लेकिन इसके बाद से इसमें कई बदलाव किए गए हैं.”
अभी मस्जिद की देख-रेख का काम शाही जामा मस्जिद कमिटी करती है.
शाही जामा मस्जिद कमिटी पक्ष के वकील क़ासिम जमाल कहते हैं, “आधी से ज़्यादा इनकी जानकारियां ग़लत हैं. अगर इसमें ज़रा भी सच्चाई है तो ये तो एएसआई और मस्जिद प्रबंधन कमिटी के बीच का मामला है. इस मुक़दमे में इन चीज़ों को लाने का क्या मतलब है?”
एएसआई ने अपने जवाब में लिखा है कि मस्जिद में कई तरह के ‘अवैध निर्माण’ हुए हैं और इसके लिए मस्जिद प्रबंधन कमिटी ज़िम्मेदार है.
एएसआई ने कहा है कि मस्जिद की सीढ़ी के दोनों तरफ़ स्टील की रेलिंग लगा दी है और इस अवैध स्टील रेलिंग को लेकर 19 जून 2018 को एफ़आईआर दर्ज़ कराई थी.
एएसआई का कहना है कि मस्जिद में प्लास्टर ऑफ़ पेरिस का इस्तेमाल किया गया है जिससे मस्जिद का वास्तविक स्वरूप नष्ट हो गया है.
इसके अलावा एएसआई ने कुछ और अवैध निर्माण का दावा किया है-
- मस्जिद के केंद्र में एक हौज है और नमाज़ी इसका इस्तेमाल करते हैं. वर्तमान में इसमें पत्थर आदि लगाकर नवीनीकरण कर दिया गया है.
- मुख्य द्वार से मस्जिद के भीतर आने वाली फर्श पर लाल बलुआ पत्थर, संगमरमर और ग्रे नाइट स्टोन की परत लगा दी गई है जिससे पुराना फर्श दब गया है.
- मस्जिद में प्लास्टर ऑफ़ पेरिस का इस्तेमाल किया गया है जिससे मस्जिद का वास्तविक स्वरूप नष्ट हो गया है.
- मस्जिद के पिछले हिस्से में जो कमरे बने हैं उन्हें दुकानों के तौर पर मस्जिद कमिटी द्वारा किराए पर दिया जा रहा है.
अवैध निर्माण के सवाल पर क़ासिम जमाल कहते हैं, “जहां रेलिंग की बात है उसमें कंस्ट्रक्शन का कोई मामला नहीं है वो तो एक अस्थाई व्यवस्था है जो लोगों की सहूलियत के लिए है. अगर एएसआई को कुछ अवैध निर्माण लग रहा है तो उन्हें शिकायत करनी चाहिए थी. अगर शिकायत होगी तो हम केस लड़ेंगे.”
विष्णु शर्मा का कहना है कि एएसआई ने यह चिंता भी जताई कि प्रबंध समिति द्वारा मस्जिद के ढांचे में अनधिकृत परिवर्तन गै़र-कानूनी है और इस पर रोक लगाई जानी चाहिए.
‘मस्जिद में जांच करने से रोकने की कोशिश’
एएसआई ने अदालत को बताया है कि मस्जिद की वर्तमान स्थिति अज्ञात है, क्योंकि मस्जिद समिति के सदस्यों ने एएसआई अधिकारियों को ‘लंबे समय से’ मस्जिद में प्रवेश करने से रोका जा रहा है.
एएसआई का दावा है, “एएसआई के लिए हालात बहुत मुश्किल हैं. यहां तक कि एएसआई के अधिकारियों को मस्जिद में निरीक्षण के लिए जाने की इजाज़त नहीं है. हालांकि समय-समय पर ज़िला प्रशासन की मदद से मस्जिद का निरीक्षण किया गया है. एएसआई की टीम ने सबसे ताज़ा निरीक्षण 25 जून 2024 को किया था. तब भी टीम को परेशानियों का सामना करना पड़ा था.”
यहां एक चीज़ स्पष्ट करनी ज़रूरी है कि एएसआई टीम ने हालिया जो सर्वे (19 नवंबर और 24 नवंबर) किए हैं वो ज़िला अदालत के आदेश पर किए हैं. इसके अलावा एएसआई की टीम संरक्षित स्मारकों का नियमित सर्वेक्षण या निरीक्षण करती है.
एएसआई ने आगे बताया, “जून में निरीक्षण करने वाली टीम के पहुंचने से पहले ही काफ़ी संख्या में स्थानीय निवासियों की भीड़ जमा हो गई थी. जिसमें जामा मस्जिद कमिटी के अध्यक्ष जफ़र अली समेत बाकी सदस्य थे. टीम जब निरीक्षण प्रक्रिया कर रही थी तो मस्जिद कमिटी के सदस्य लगातार फ़ोटो और वीडियो बना रहे थे.”
हालांकि मस्जिद कमिटी के वकील एएसआई के इन आरोपों से इनकार करते हैं.
क़ासिम जमाल का कहना है, “मैंने कमिटी से इस बारे में जानकारी ली है. कमिटी का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं है. एएसआई वाले आते रहे हैं और जांच करके चले जाते थे. लेकिन अब पता नहीं कि ये लोग किस आधार पर ऐसा कह रहे हैं.”
एएसआई का दावा है कि मस्जिद परिसर में लगातार पुरातात्विक अवशेषों के संरक्षण अधिनियम 1958 के प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है.
मस्जिद पक्ष के वकील क़ासिम जमाल का कहना है कि उन्हें पता नहीं है कि एएसआई के हलफ़नामे में क्या है
संभल मामले में अब तक क्या-क्या हुआ?
रविवार को शाही जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हुई हिंसा की जांच के लिए गठित न्यायिक जांच कमिटी संभल पहुंच थी.
तीन सदस्यीय न्यायिक जांच कमिटी ने मस्जिद और हिंसा की जगहों का दौरा किया और इस दौरान सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम थे.
कमिटी में हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस देवेंद्र कुमार अरोड़ा, रिटायर्ड आईएएस अमित मोहन प्रसाद और रिटायर्ड आईपीएस अरविंद कुमार जैन शामिल हैं.
सरकार ने कमिटी को जांच पूरी करने और रिपोर्ट सौंपने के लिए दो महीने का वक्त दिया है.
फिलहाल ज़िला प्रशासन ने 10 दिसंबर तक किसी भी बाहरी व्यक्ति के ज़िले में प्रवेश पर रोक लगा दी है.
रविवार को ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल भी उत्तर प्रदेश के संभल जाएगा.
इससे पहले शनिवार को जिला प्रशासन ने संभल आ रहे समाजवादी पार्टी के 15 सदस्यीय दल में शामिल नेताओं और कार्यकर्ताओं को रास्ते में ही रोक दिया था.
संभल में कैला देवी मंदिर के महंत ऋषिराज महाराज और उनके साथ मिलकर कुछ लोगों ने 19 नवंबर को ज़िला अदालत एक याचिका में दाख़िल की. उनका दावा है कि मस्जिद असल में हरिहर मंदिर है.
अदालत ने 19 तारीख़ को ही मस्जिद परिसर के सर्वे का आदेश पारित कर दिया और उसी दिन अदालत के आदेश पर मस्जिद परिसर का पहला सर्वे भी हुआ. हालांकि इस दौरान कोई हिंसा नहीं हुई थी.
24 नवंबर को दूसरे सर्वे के दौरान भीड़ और पुलिस बल आमने-सामने आ गए थे और देखते ही देखते कई घंटों तक हिंसक झड़पें हुईं.
इस हिंसा में पांच लोग मारे गए थे लेकिन पुलिस ने चार लोगों की मौत की ही पुष्टि की है.
बीते शुक्रवार यानी 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केस की सुनवाई की और कहा कि निचली अदालत (सिविल कोर्ट ) तब तक कोई सुनवाई नहीं करेगी जब तक कि मस्जिद कमिटी की याचिका (अगर वो कोई याचिका दायर करती है) हाई कोर्ट में सूचीबद्ध न हो जाए.